ज़िन्दगी अब मैं तेरी कुछ खबर नहीं रखता ,
रुलाया तूने इतना कि चश्म-ए-तर नहीं रखता |
आंधियां बनकर आशियाँ मेरा तबाह न करता अगर,
तो यूं दुआओं के पहरे में अपना घर नहीं रखता |
बीच राह में तूने बड़ी बेदर्दी से ऐसे ठुकराया था,
कि अब सफ़र में तेरे जैसा राहबर नहीं रखता |
- कुलदीप "कमल"