कमल-ए-ग़ज़ल (kamal-e-gazal)
New shayris and gazals of "kamal"
Thursday, 10 December 2015
shayri
वफ़ा जितनी सको ले लो मेरे दरिया-ए-दिल से तुम,
मगर मैं दर्द ज़ख्मों का कभी भी दे न पाऊंगा |
यही हमराज़ है मेरा यही है आस जीने का,
बिना इसके मैं एक पल भी अकेला रह न पाऊंगा |
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कुलदीप "कमल"
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