Thursday, 10 December 2015

shayri




वफ़ा जितनी सको ले लो मेरे दरिया-ए-दिल से तुम,
मगर  मैं  दर्द  ज़ख्मों  का  कभी  भी  दे  न  पाऊंगा |
यही  हमराज़  है  मेरा  यही  है  आस  जीने का,
बिना इसके मैं एक पल भी अकेला रह न पाऊंगा |
                                - कुलदीप "कमल"



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