कमल-ए-ग़ज़ल (kamal-e-gazal)
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Tuesday, 15 December 2015
चंद मिसरे
इश्क खुशियों का जहाँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |
हर मुहब्बत दास्ताँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |
यूं बहुत कुछ बोलती है आँख की गहराई भी,
प्यार लब से ही बयाँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |
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कुलदीप "कमल"
Saturday, 12 December 2015
हर तरफ सुखा पड़ा है घर में एक दाना नहीं,
अब परिंदों का यहाँ पर कोई ठिकाना नहीं |
दिन मजूरी में गुजारी रात गुज़री नींद में ,
है मुहब्बत चीज़ क्या हमने कभी जाना नहीं |
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कुलदीप "कमल"
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