Wednesday, 16 December 2015

तुझे भूलने की कोशिश में मेरी हर बार पलकें भीग जातीं हैं |
मैं तेरे इस शहर से दूर रहूँ जितना याद तेरी खींच लाती हैं |
        - कुलदीप "कमल"

Tuesday, 15 December 2015

चंद मिसरे



इश्क खुशियों का जहाँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |

हर मुहब्बत दास्ताँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |

यूं बहुत कुछ बोलती है आँख की गहराई भी,

प्यार लब से ही बयाँ हो,ये ज़रूरी तो नहीं |
              
          - कुलदीप "कमल"

Monday, 14 December 2015

प्यार रिश्ता औ" वफ़ा बस नाम बनकर रह गयी |
ज़िंदगी दौलत की चाहत में उलझकर रह गयी  |
रोज़ जीने के लिए बस इक ज़रुरत चाहिए,
वो ज़रूरत रोज़ की लालच में ढलकर रह गयी |
                  - कुलदीप "कमल"

Sunday, 13 December 2015

शेर


प्यार क्या है क्या वफ़ा है मै समझ सकता अगर ,
दिल मेरा उसकी ख़ुशी में यूं कभी जलता नहीं |

दोष क्या दें आज उनको हो गए जो बेवफा ,
प्यार शायद हमने ही दिल से कभी किया नहीं |
                       - कुलदीप "कमल"

Saturday, 12 December 2015

हर तरफ सुखा पड़ा है घर में एक दाना नहीं,
अब परिंदों का यहाँ पर कोई ठिकाना नहीं |

दिन मजूरी में गुजारी रात गुज़री नींद में ,
है मुहब्बत चीज़ क्या हमने कभी जाना नहीं |
                             कुलदीप "कमल"

Friday, 11 December 2015

ज़िन्दगी अब मैं तेरी कुछ खबर नहीं रखता ,
रुलाया तूने इतना कि चश्म-ए-तर नहीं रखता |

आंधियां बनकर आशियाँ मेरा तबाह न करता अगर,
तो यूं दुआओं के पहरे में अपना घर नहीं रखता |

बीच राह में तूने बड़ी बेदर्दी से ऐसे ठुकराया था,
कि अब सफ़र में तेरे जैसा राहबर नहीं रखता |
                            
- कुलदीप "कमल"

Thursday, 10 December 2015

shayri




वफ़ा जितनी सको ले लो मेरे दरिया-ए-दिल से तुम,
मगर  मैं  दर्द  ज़ख्मों  का  कभी  भी  दे  न  पाऊंगा |
यही  हमराज़  है  मेरा  यही  है  आस  जीने का,
बिना इसके मैं एक पल भी अकेला रह न पाऊंगा |
                                - कुलदीप "कमल"



Wednesday, 9 December 2015

GAZAL




  "मुस्कुरा दो"
 


तुम कांपते लबों से,इक बार मुस्कुरा दो|

पागल मुझे बना के,इक बार मुस्कुरा दो|



इक रोज़ बुझ गया था, मेरा चराग दिल का

ये जल उठेगा फिर से,इक बार मुस्कुरा दो|



उजड़े हुए चमन में बरसों उदास बैठे

सब फूल खिल उठेंगे,इक बार मुस्कुरा दो|



बस्ती में आज जुगनू हर द्वार पे खड़े हैं

सब जगमगा उठेंगे,इक बार मुस्कुरा दो|

- कुलदीप "कमल" 

Tuesday, 8 December 2015

GAZAL

तेरे  मुस्कान  के  आगे  गुस्सा  मेरा  पिघल  जाए|
दर्प निकले अंखियों से जलन दिल से निकल जाए|

मेरे तन में बसा है इक सुस्त आशिक नसीबों का 
तेरे बस एक छुअन से ही मेरा तन मन मचल जाए|

असर हो प्यार का ऐसा कि लालच बदले चाहत में
नहीं  तो  कामना  मेरी  मुहब्बत  में  बदल  जाए|

लबों को जाम से पहले लबों से थाम लेना तुम 
नशे की आग में तेरा कहीं आशिक न जल जाए|
                                  - कुलदीप "कमल"